प्रायोगिक परीक्षा का उड़ाया जा रहा मजाक

नागपुर : शासकीय परिभाषा में कोरोना काल लगभग पूरी तरह खत्म होने कि कगार पर पहुंच चुका है। वर्तमान में चारों तरफ विश्वविद्यालयों में परीक्षा का दौर चालू है। नियमानुसार सैद्धांतिक परीक्षा के 15-20 दिनों पूर्व हर संलग्नित कालेजों को प्रायोगिक परीक्षा समय सीमा में ओर संवैधानिक तरीके से आयोजित करवाना रहती है। ताकि वार्षिक परीक्षा के परिणाम समय पर निकाले जा सके। हाल ही में गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली ने एक तुगलकी फरमान जारी किया है कि विद्यापीठ से संबंधित महाविद्यालयों में प्रायोगिक परीक्षा लेने के लिए स्थायी मान्यता प्राप्त शिक्षकों  या सीएचबी शिक्षकों के माध्यम से आतंरिक मूल्यांकनकर्ता के रूप में परीक्षा लेंगे। 

वहीं बाह्य मूल्यांकनकर्ता के लिए कालेज के ही वरिष्ठ शिक्षकों कि मदद लें। यदि किसी कालेज में कोई वरिष्ठ शिक्षक नहीं है तो उस कालेज के प्राचार्य स्वयं ही बाह्य मूल्यांकनकर्ता बनकर प्रायोगिक परीक्षा ले सकेंगे। सबसे वैचारिक और सोचनीय पहलू यह है कि यदि कालेज में ही कोई वरिष्ठ शिक्षक नहीं है तो क्या प्राचार्य स्वयं सभी विषयों कि प्रायोगिक परीक्षा के लिए जिम्मेदार रहेंगे ? एक आर्ट विषय का प्राचार्य, कामर्स ओर साइंस कि प्रायोगिक परीक्षा के अंक आखिर किस आधार पर प्रदान करेंगे ? विद्यापीठ नियमानुसार सभी विषयों के ही  संबंधित मान्यता प्राप्त शिक्षकों का होना अनिवार्य है। फिर एक ही प्राचार्य आर्ट, कामर्स, ओर साइंस के प्रायोगिक अंक किस आधार पर देंगे? साथ ही, जिन कालेजों में मान्यता प्राप्त सीएचबी शिक्षकों का अभाव है वे प्रायोगिक परीक्षा किस तरह से ले सकेंगे ? गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली के आला अधिकारियों ने प्रायोगिक परीक्षा को  सरासर मजाक बना कर रख दिया है। यहीं नहीं गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली ने कालेजों के हजारों विद्यार्थियों से प्रायोगिक परीक्षा का शुल्क भी लाखों-करोडो रूपयों में वसूल किया है। तो फिर गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली अपनी ओर से बाहरी मूल्यांकनकर्ता नियुक्त करने में इतनी फिसड्डी क्यों साबित हो रही है। जब विद्यापीठ के पास भरपूर समय प्रायोगिक परीक्षा लेने के लिए था तब गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली ने उचित कदम क्यों नहीं उठाया ? सूत्रों कि माने तो गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली विगत कई वर्षों से लगातार किसी ना किसी विवादों के कारण सुर्खियों में रही है। 

विद्यापीठ गढ़चिरौली के इस तुगलकी फरमान से एक ओर जहां हजारों विद्यार्थियों कि प्रायोगिक परीक्षा के अंकों के साथ खुलकर पक्षपात ओर खिलवाड़ होगा वहीं ऐसे में विद्यार्थियों से प्रायोगिक परीक्षा का मोटा शुल्क वसूल ने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। इस तुगलकी फरमान जारी होने के बाद से ही संबंधित सभी कालेजों में आजकल एक ही चर्चा जोरों से चल रही है कि इस तरह से प्रायोगिक परीक्षा लेने के लिए गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली ने क्या राज्यपाल महोदय से स्वीकृति प्राप्त कि है ? या राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री ने  विद्यापीठ गढ़चिरौली को यह सब करने के लिए हरी झंडी दिखाई है ? या यूजीसी ने गोंडवाना विद्यापीठ गढ़चिरौली को कोई पत्र जारी किया है ? फिर विद्यापीठ गढ़चिरौली के आला अधिकारियों कि मनमर्जी ओर लालफीताशाही के चलते हजारों विद्यार्थियों के साथ प्रायोगिक परीक्षा के अंक वितरण में पक्षपात क्यों न कैसे हो रहा है ?

सूत्रों से जानकारी मिली है कि विद्यार्थियों का एक संगठन शीघ्र ही कुलाधिपति  राज्य के महामहिम राज्यपाल से मिलने मुम्बई जाकर विद्यापीठ गढ़चिरौली के इस तुगलकी फरमान के खिलाफ आवाज उठाने वाला है। साथ ही, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पालक मंत्री को भी शिकायत करने वाला है।


 डा. तेजसिंह किराड़ 

                              (ब्यूरो चीफ)